आज हम आपको फांसी की सजा से जुड़े कुछ ऐसे उनसुने तथ्यों से रूबरू कराएंगे जिसको शायद ही आप जानते हो । वैसे तो हर जुर्म के लिए कोई ना कोई सजा जरूर होती है। कुछ जुर्म ऐसे होते हैं जिनके लिए मौत की सजा भी कम पड़ जाती है। लेकिन सजा-ए-मौत, जिस से बड़ी कोई सजा नहीं हो सकती है। यह सजा भारत में तब दी जाती है जब कोई और सजा उस मुजरिम के लिए उसके गुनाहों का न्याय नहीं कर पाती।
1. जिस दिन किसी भी कैदी को फांसी की सजा दी जाना तय होती है। उस दिन उसे प्रातः काल 3:00 बजे ही उठा दिया जाता है और फिर उसके सामने दो विकल्प रखे जाते हैं। इन दो विकल्पों में नहाने के लिए गर्म या ठंडा दोनों ही तरह के पानी को दिया जाता है। कैदी का जिस तरह के पानी से नहाने का मन हो वह नहा सकता है। इसके उपरांत कैदी को कुछ धर्म से जुड़ी किताबें भी दी जाती हैं ताकि वह अंतिम समय में जो भी प्रार्थना करना चाहे वह कर सके।
2.भारत में सूर्य उदय से पहले ही फांसी की सजा दे दी जाती है क्योंकि सूर्योदय के बाद जेल के अंदर काम शुरू हो जाते हैं और फांसी के कारण किसी भी कैदी पर कोई भी प्रभाव ना पड़े। इसलिए फांसी यानी सजा-ए-मौत की क्रिया को पहले ही समाप्त कर दिया जाता है।
3.भारत में यह सजा इतनी बड़ी मानी जाती है कि इस सजा को सोना देने के बाद जज भी अपने पेन की निब तोड़ देते हैं। क्योंकि उस पेन की वजह से किसी का जीवन समाप्त हुआ होता है और इसका दोबारा प्रयोग करना उचित नहीं है। एक और कारण है जिस वजह से जज पेन की निब तोड़ देते हैं। यह कारण है कि जज के पास में भी यह अधिकार नहीं होता है की फांसी की सजा यानी सजा-ए-मौत देने के बाद जज भी अपने फैसले पर कोई पुनर्विचार या फैसले को बदलने की कोशिश कर सकें।
4.फांसी से पहले जल्लाद यह बोलता है कि, मुझे माफ कर दो हिंदू भाइयों को राम-राम, मुस्लिम को सलाम हम क्या कर सकते हैं हम तो हैं हुकुम के गुलाम।
5.किसी भी कैदी की फांसी से पहले उसके चेहरे को एक काले सूती कपड़े से पूर्णता ढक दिया जाता है। जिसके बाद फांसी दी जाती है और फिर 10 मिनट तक के लिए मुजरिम को उस फंदे पर लटका दिया जाता है। जिसके बाद डॉक्टर फांसी के फंदे पर लटके हुए मुजरिम को चेक करके यह बताता है कि वह जीवित है या फिर मृत।
6.फांसी के फंदे को कितना मोटा होना चाहिए इसके लिए भी मापदंड को तय किया गया है। फांसी के फंदे की रस्सी को दस इंच से ज्यादा मोटा रखने के निर्देश दिए गए हैं।
7.सुप्रीम कोर्ट द्वारा जिस भी कैदी को सजा-ए-मौत यानी फांसी की सजा दी जाती है। फांसी की सजा से 15 दिन पहले ही घर परिवार वालों को इस बात की सूचना दे दी जाती है ताकि वे आकर मिल सकें।