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यहाँ लड़की की लड़की से होती है शादी
आमतौर पर दूल्हा बारात लेकर दुल्हन के घर आता है, ढ़ेर सारी रस्में निभाई जाती हैं और ऐसे शादी संपन्न होती है। लेकिन गुजरात के आदिवासी बाहुल्य गांव की शादियों में दूल्हा नहीं होता। गुजरात के छोटा उदयपुर जिले में बिना किसी विरोध के बड़े ही धूम-धाम से दुल्हन की शादी लड़के से नहीं लड़की से की जाती है। दुल्हन को लाने के लिए दूल्हा नहीं जाता वो तो बस अपने घर में रहकर दुल्हन का इंतजार करता है। अगर लड़का घोड़ी चढ़कर मंडप में जाता है तो अशुभ माना जाता है, दांपत्य जीवन असफल रहता है और वंश भी नहीं बढ़ता ऐसी मान्यता है। दूल्हे की जगह दूल्हे की कंवारी बहन घोड़ी चढ़ती है और बारात लेकर दुल्हन के घर जाती है दुल्हन को दूल्हे के सुपुर्द करके बहन का काम यहां खत्म हो जाता है। ससुराल आने के बाद दुल्हन को दूल्हे के साथ वरमाला से लेकर फेरे तक सारी रस्में दोबारा करनी होती हैं। कहते हैं कि शादी के लिए दूल्हे की बहन का कंवारा होना जरूरी है, अगर दूल्हे की कोई बहन नहीं है तो चचेरी, ममेरी बहन ये रस्में निभाती हैं।
बच्चों को छत से नीचे फेंकना
भारत के महाराष्ट्र जिले में सोलापुर नाम का एक शहर है जहाँ पर बाबा उमर की दरगाह है जो कि लगभग 700 वर्ष पुरानी है। इस दरगाह में हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही दर्शन करने आते हैं। यहाँ पर हर साल कई माता-पिता अपने बच्चों की लम्बी उम्र के लिए प्रार्थना करने आते हैं। यहाँ पर प्रार्थना के नाम पर एक ऐसा रीती रिवाज होता है जिसने पुरे विश्व में इस जगह को कुख्यात कर दिया है। यहाँ पर मस्जिद के मौलवी और अनुभवी लोग एक साल तक के छोटे बच्चों को मस्जिद की छत से लगभग 50 फूट की ऊँचाई से नीचे गिराते हैं। मस्जिद के नीचे दुसरे गाँव वाले और अन्य अनुभवी लोग चादर को फैलाकर उसमे बच्चों को पकड़ते हैं। इस रिवाज को ना केवल मुस्लिम बल्कि हिन्दू भी अपनी सन्तान की लम्बी उम्र और स्वास्थ्य की कामना के लिए अपनाते हैं। यहां के लोगों का मानना है कि ऐसा करने से बच्चे की उम्र लम्बी होती है और उसे भगवान के दर्शन होते हैं।
बारिश करवाने के लिए मेंढकों की शादी
भारत के नागपुर और जमशेदपुर इलाके में एक अजीब प्रथा अपनाई जाती है जहाँ पर स्थानीय लोग मेंढकों की शादी करवाते हैं। भारत के इन इलाकों में अक्सर काफी गर्मी रहती है और वर्षा भी कई बार बहुत देरी से आती है। इसलिए स्थानीय लोग इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए इस प्रथा को पूरा करने के लिए दो मेंढकों को पकड़कर लाते हैं। इन मेंढको को दो अलग अलग तालाबों से लाया जाता है। अब इन मेंढको को एक मन्दिर में ले जाकर वहां पर पूरे रीती रिवाज के साथ इन मेंढकों की शादी करवाई जाती है। इस प्रथा के पूरा होने के बाद इन्हें साथ-साथ एक ही तालाब में छोड़ दिया जाता है। स्थानीय लोगों का ऐसा मानना है कि मेंढक इंद्रदेव के बहुत बड़े भक्त होते हैं जिनको प्रसन्न करने से इंद्रदेव प्रसन्न हो जाते हैं इसलिए ये प्रथा आजमाते हैं। वैसे बारिश करवाने के लाजवाब तरीका है।
भूत-प्रेत से छुटकारे के लिए कुत्ते से शादी
मेंढकों की शादी का तो समझ में आया कि दो जानवरों की शादी हो सकती है, लेकिन जब बात एक जानवर और इन्सान की शादी हो तो ये बात कुछ हज़म नहीं होती है। लेकिन ये सच है भारत में झारखंड राज्य के कई इलाकों में इस प्रथा को अपनाया जाता है। इस प्रथा में जिन लड़कियों पर भूत-प्रेत का साया होता है उसके समाधान के लिए माता पिता अपनी बेटी की एक कुत्ते से शादी करवाने की एक रस्म निभाते हैं। स्थानीय लोगों का ऐसा मानना है कि कुत्ते से शादी करवाने से प्रेतबाधा उस बच्ची से निकल कर कुत्ते में चली जाती है। इस प्रथा को महिला की तरह पुरुष भी भूत बला से छुटकारा पाने के लिए कुतिया से शादी करते हैं। इस प्रथा में हिन्दू मान्यता के अनुसार शादी की सारी रस्में निभायी जाती हैं और खाने का प्रोग्राम भी किया जाता है जिसमें सभी रिश्तेदार शामिल होते हैं।
सिर से नारियल फोड़ने की प्रथा
हर साल हज़ारों श्रद्धालु दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य के करुर जिले में प्रसिद्ध महालक्ष्मी मन्दिर में युवाओं से लेकर बुजुर्ग सभी इस मन्दिर में इकट्ठे होकर अपने सिर पर नारियल फोड़तें हैं। इस मन्दिर के बारे में एक ब्रिटिश राज की कहानी मशहूर है। इस कहानी के अनुसार अंग्रेज इस मन्दिर को तोड़कर एक रेलवे ट्रैक बनाना चाहते थे। गाँव वालों ने अंग्रेज़ों का विरोध किया ताकि उस प्राचीन मंदिर को सुरक्षित कर सकें। अंग्रेज़ों ने एक शर्त रखी कि इस मन्दिर से निकले हुए पत्थरों को उनको अपने सिर से फोड़ना है और अगर वो सफल हो गये तो अंग्रेज रेलवे ट्रैक नही बनायेंगे। गाँव वालों ने जान की परवाह किये बिना देवी का नाम लेकर अपने सिर से पत्थर तोड़ दिए और किसी को चोट नहीं आयी। अंग्रेज भी इस अजूबे को देखकर चकित रह गये और उन्होंने रेलवे ट्रैक बनाना रोक दिया। तब से अब तक पत्थर की जगह पर नारियल अपने सिर से फोड़कर इस प्रथा को पूरा किया जाता है। यह सारा काम चंद मिनटों में पूरा हो जाता है। कुछ श्रद्धालुओं को पीड़ा भी होती है लेकिन फिर भी वो इसको सहन कर लेते हैं। बाद में नारियल के टुकड़ों को भगवान को चढ़ा दिया जाता है।
गायों के नीचे लेटना
मध्य प्रदेश में दिवाली के बाद दुसरे दिन गोवर्धन पूजा पर यहाँ के स्थानीय लोगों द्वारा एक विशेष प्रथा का आयोजन किया जाता है। इस प्रथा में स्थानीय लोग अपने मन की मुराद पूरी करने के लिए दौड़ती हुई गायों और बैलों के नीचे लेटते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस प्रथा से उनको गौमाता का आशीर्वाद मिलता है और उनके जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। इस रिवाज में गायों के तले दबकर कई लोग गंभीर रूप से जख्मी भी हो जाते हैं फिर भी वे इसे आशीर्वाद समझकर इस प्रथा को पूरा करते हैं। इस प्रथा को यहाँ कई सालों से निभाया जा रहा है और हज़ारों श्रद्धालु इस प्रथा को देखने के लिए इस मेले में इकट्ठे होते हैं।
डंडों से पिटाई वाला उत्सव
आंध्र प्रदेश के देवरागट्टू मंदिर में बानी नाम का एक उत्सव मनाया जाता है। जिसमें लोग एक-दूसरे को डंडों से पीटते हैं। इस दर्दनाक उत्सव में कई लोगों की जान भी चली जाती है। फिर भी हर साल ये उत्सव यहाँ के निवासियों द्वारा बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है।
सुईयों से शरीर छेदना
तमिलनाडु जिले में भगवान मुरगन के प्रति भक्ति के लिए ये दर्दनाक उत्सव मनाया जाता है। इसमें लोग अपने ही शरीर को कठिन यातनाएं देते हैं। लोग अपने शरीर को सुईयों और सलाखों से छेद लेते हैं। ऐसी मान्यता है की ऐसा करने से उनके सारे कष्ट और परेशानियां नष्ट हो जाते हैं और प्रभु प्रशन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं।
आग पर चलना
तमिलनाडु में एक ऐसा रिवाज जहां पर लोग अंगारों पर चलते हैं। इसके लिए काफी पहले से ही तैयारियां करनीं पड़तीं हैं। इस उत्सव को लोग बहुत जोर-शोर और उत्साह के साथ मनाते हैं।
ये कुछ ऐसी अजीबोगरीब प्रथाए थी जो भारत मे कई सालो से लगातार चली आ रही है।